समाधिपाद । सूत्र 6 - 10 ।

प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः ॥ ६ ॥ पाँच वृत्तियाँ हैं – प्रमाण , विपर्यय , विकल्प , निद्रा एवम स्मृति ॥ ६ ॥ पाँच प्रकार की वृत्तियों के नाम हैं – प्रमाण , विपर्यय , विकल्प , निद्रा एवम स्मृति । प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि ॥ ७ ॥ प्रत्य़क्ष , अनुमान एवं आगम – ये प्रमाण हैं ॥ ७ ॥ प्रमाणरुपी वृत्तियों को तर्क से सिद्ध किया जा सकता है । प्रमाण तीन प्रकार के हैं – (1) प्रत्यक्ष – जो आँखों के समक्ष हो , वो प्रत्यक्ष है । अगर आग सामने हो तो वो आग है , और मनुष्य को इससे सावधानी बरतनी चाहिये । मृत्यु सुनिश्चत है , और आपके समक्ष हो जाती है । अतः यह प्रामाणिक है कि सबकी मृत्यु होगी । क्लिष्ट प्रत्यक्ष वृत्ति मौत को देख कर भी ऐसा अह्सास देगी कि ऐसे जियो कि जैसे कभी मरोगे ही नहीं । अक्लिष्ट वृत्ति यह अहसास देगी कि मौत तो सुनिश्चित है , अब देर न करो ,कुछ सार्थक काम करो । आँख से रुप , कान से शब्द , नाक से गंध , जिह्वा से रस एवं त्वचा से स्पर्श की तन्मात्राएँ व्यक्त होती हैं और इनसे प्रत्यक्ष अनुभव होता है । योगी को इस अनुभव से कोई चित्तवृत्ति नहीं होती । यदि ये अनुभव क्लिष्ट वृत्तियाँ पैदा करती हों , तो उससे क्लेश होता है । इनको समाप्त करने के लिये अक्लिष्ट वृत्तियों को पैदा करना चाहिये । (2) अनुमान – किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष अनुभव के सहारे अप्रत्यक्ष स्वरुप का ज्ञान होता है , तो वह अनुमान वृत्ति हुयी । धुआँ देखकर जैसे आग का ज्ञान हो , वह अनुमान है । तर्क द्वारा प्रत्यक्ष अनुभवों से अनुमान वृत्ति पैदा होती है । अक्लिष्ट अनुमान वृत्ति के ज्ञान के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्तिविशेष को सही ज्ञान हो , और यह अष्टाँग योग के अभ्यास से प्राप्त होता है । (3) आगम – आप्त पुरुषों एवं शास्त्रों के द्वारा प्राप्त ज्ञान आगम वृत्ति है । वेदोपनिषद एवं वेदोपनिषद सम्मत शास्त्र एवं उन योगियों के वचन एवं कर्म जिन्हें प्रत्यक्ष एवं अनुमान के परे ज्ञान हो गया हो अक्लिष्ट वृत्तियों को पैदा करते हैं । विपर्ययो मिथ्याज्ञानम् अतद्रूपप्रतिष्ठम् ॥ ८ ॥ दूसरे रुप में प्रतिष्ठित होने का मिथ्या ज्ञान विपर्यय है ॥ ८ ॥ किसी पदार्थ के सही स्वरुप को न देखकर , किसी और रुप को सही मान लेना मिथ्या ज्ञान है । यह वृत्ति प्रायः क्लिष्ट होती है , किंतु कभी – कभी यह मिथ्या ज्ञान अक्लिष्ट वृत्तियों को भी पैदा करता है । विपर्यय वृत्ति से मिथ्या ज्ञान होता है , जो सही रुप के जानने पर नष्ट हो जाता है । जैसे कि यह मानना कि सूर्य ग्रहण राहु के सूर्य निगलने से है , एक विपर्यय वृत्ति है । यह ज्ञान हो जाना कि सूर्य ग्रहण सूर्य एवं पृथ्वी के बीच में चँद्रमा के आ जाने से होता है , इस वृत्ति को समाप्त कर देता है । यह सम्यक ज्ञान प्रमाण वृति से प्राप्त हो जाता है । शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः ॥ ९ ॥ विकल्प शब्दज्ञान से होता है , वस्तु से नहीं ॥ ९ ॥ विकल्प वृत्ति किसी वस्तु को देखकर नहीं होता । वह शब्दों के ज्ञान से होता है । इसमें शब्दज्ञान के आधार पर मन में वस्तु की कल्पना होती है । इस वृत्ति में वस्तु को कभी देखा नहीं जाता , शब्दों के आधार पर उनका ज्ञान प्राप्त किया जाता है । अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिर्निद्रा ॥ १० ॥ निद्रा वृत्ति प्रत्यय अर्थात अनुभव के अभाव पर आधारित है ॥ १० ॥ निद्रा में जागे हुए समय के अनुभव नहीं होते हैं । सोते समय ऐसे अनुभवों का अभाव होता है । परंतु अनियंत्रित मानसिक गतिविधियाँ सोते समय भी होती हैं । इनसे चित्त में क्लिष्ट एवं अक्लिष्ट दोनों प्रकार की वृत्तियों का प्रादुर्भाव होता है । अक्लिष्ट वृत्तियाँ शरीर एवं मन को शांत करते हैं , जबकि क्लिष्ट वृत्तियाँ निद्रा में भी मन को व्याकुल रखती हैं । इन क्लिष्ट वृत्तियों से योगाभ्यास में अडचन पैदा होती है ।

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